Friday, July 15, 2011

हमारी जींद यात्रा- कीटों को पहचानने, उन्हें समझने की यात्रा

 10  से  13 जुलाई, 2011
 
कीटों के बारे में जानने में मेरी दिलचस्पी तबसे और बढ़ गयी जब मैंने खेती विरासत मिशन के साथ काम करना शुरू किया | और जब मैंने फेसबुक पर प्राकृतिक कीट नियंत्रण ग्रुप के साथ जुडी तो यह दिलचस्पी और भी बढ़ गयी |  और फिर एक दिन हमें पता चला कि हमें  उस गाँव, यहाँ से इन कीटों को पहचानने, समझने की शुरुआत हुई , वहाँ उन औरतो से और इस विलक्षण काम को शुरू करने वाले डॉक्टर सुरेंदर दलाल जी से सीखने के लिए जाना है|
जाने से हफ्ता पहले ही सभी से विचार चर्चा होने लगी और मै और मेरे साथी इस सबके बारे में सीखने के लिए बहुत ही उत्साहित थे और एक -एक कर  दिन गिन रहे थे  और आखिरकार वो सुबह आ ही गई जब हमने जैतो से जींद जाने वाली सुबह की गाडी पकड़नी थी| सुबह सभी साथी अपने-अपने गाँव से जैतो स्टेशन पर पहुंचे| पूरे रास्ते जींद पहुंचकर कीटों को पहचानने, उन्हें समझने के एक नये अनुभव को लेने के बारे में ही बाते होती रही| हम सुबह 9 :30 बजे जींद पहुंचे जहाँ  डॉक्टर दलाल जी के दोस्त हमें लेने के लिए पहुँच चुके थे| रास्ते में उन्होंने हमें डॉक्टर साहिब के अथक प्रयासों के बारे में बताया कि कैसे डॉक्टर साहिब दिन रात इसी काम में लगे रहते है| 
मन में किसी अनजाने से  सर्प्राइज़ की उम्मीद लिए हम 10 बजे डॉक्टर साहिब के घर पहुंचे और देखिये हमें वो सर्प्राइज़ मिल भी गया जब हमने देखा कि  उमेंदर दत्त जी भी वहाँ  पहुंचे हुए थे| हमारे यह पूछने पर, कि उन्होंने अपने आने के बारे में हमे पहले क्यों नहीं बताया, कहा कि वो भी कीटों के बारे में सीखने में पीछे नहीं रहना चाहते थे|
रस्मी बातचीत और एक दूसरे से परिचय करने के बाद डॉक्टर साहिब ने बताया कि हमारे और उमेन्द्र जी के आने के उपलक्ष्य में एक प्रेस कांफ्रेंस रखी गयी है| चाय-नाश्ते के दौरान बातचीत  करते हुए उन्होंने एक गुरुमंत्र भी दिया कि  किसी भी जंग को जीतने के लिए तीन बातें महत्वपूर्ण है- पहली दुश्मन की सही पहचान करना , उसके  भेद जानना  तथा जंग में अपने खुद के हथियार विकसित करना | अभी तक पिछले 40 वर्षो से किसान और कीटों के बीह चल रही यह जंग सिर्फ इसलिए नहीं जीती जा सकी क्योंकि किसानो को ना तो अपने दुश्मन की पहचान है, ना ही उसके बारे में जानकारी है और ना ही अपने खुद के हथियार है | बस कोई सा भी कीट दिखे बिना यह जाने कि वो शाकाहारी है या मासाहारी, कीटनाशक का छिडकाव करने लगते है |  चाय-नाश्ते के बाद सभी प्रेस कांफ्रेंस में शामिल होने के लिए तैयार थे|
11 बजे प्रेस कांफ्रेंस शुरू हुई जिसमे लगभग सभी अखबारों के पत्रकार शामिल हुए. पत्रकारों ने पंजाब में खेती विरासत मिशन दुआरा जैविक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए किये जा रहे कार्यों के सम्बन्ध में प्रशन पूछे. उमेन्द्र जी ने बताया कि कैसे पूरे देश का डेढ़ प्रतिशत भू- भाग होने पर भी पंजाब में देश के कुल कीटनाशको का 18 प्रतिशत भाग प्रयोग होता है|  पंजाब की मिट्टी, पंजाब का पानी, हवा सब प्रदूषित हो चुके है जिसके परिणामस्वरूप कैंसर, जनन शक्ति से सम्बंधित रोग, समय से पूर्व बच्चो  का जन्म, बिना अंगो वाले बच्चे पैदा हो रहे है | इस समय पंजाब सेहत सम्बन्धी संकट से जूझ रहा है| पत्रकारों के यह पूछने पर कि इस सबका क्या समाधान है, उमेन्द्र जी ने कहा कि जैविक खेती को अपनाना ही एकमात्र समाधान है. अपनी जींद यात्रा के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि वो और उनकी 6 सदस्य   टीम कीटों के बारे में सीखने के लिए ही जींद आई है ताकि पंजाब में भी इसे आगे बढ़ाया जा सके|
प्रेस कांफ्रेंस के बाद हम सभी डॉक्टर दलाल के साथ कीटों के बारे में जानने के लिए उनके साथ बैठे जिसमे उन्होंने हमें कीटों के बारे में आधारभूत जानकारी दी. डा. दलाल ने आगे बात बढ़ाते हुए हमें  बताया कि हमारे कीट-वैज्ञानिक  कीट उन रीढ़विहीन संधिपादों को कहते हैं जिनका शरीर तीन भागों में बटा हुआ हो  तथा छ: जोड़ी टांग हो. मतलब इनके शरीर के तीन भाग सिर, धड व पेट होते हैं| कीट की आँखें, मुहं व एंटीना आदि इसके सिर पर होते है| इनकी टाँगें व पंख धड पर होते हैं. कीटों की छ: जोड़ी टाँगें व अमूमन दो जोड़ी पंख होते हैं|  आमतौर पर  कीटों के जीवन की अंडा, लार्वा, प्यूपा व प्रौढ़ नामक चार अवस्थाएं होती हैं| उन्होंने विस्तार से कीटों के जीवन चक्कर के बारे में बताया |
भोजन की तासीर के अनुसार कीट दो प्रकार के होते हैं-मांसाहारी और शाकाहारी| इस दुनिया में मांसाहारी कीटों की गिनती किसान मित्रों के रूप में होती है जबकि शाकाहारी कीटों को किसानों का दुश्मन समझा जाता है| कीट चाहे मांसाहारी हों या शाकाहारी पर मुँह  की बनावट के हिसाब से मुख्य रूप से दो ही प्रकार के होते हैं-चूसक कीट-  वो कीट जो अपने डंक कि मदद से रस चूसते है और उनमे उनके मुँह कि जगह डंक होगा | इनका डंक नरम होता है| यह रस चूसने से पहले पत्ते पर एक जहर छोड़ते है और फिर डंक अंदर जाता है | दूसरे  चर्वक कीट- वो कीट जो चबा कर खाते है | हमारा खून हवा के संपर्क में आने पैर जम जाता है पर  कीटों का खून वायु के संपर्क में आने पर भी जमता नही | इसका अर्थ यह भी हुआ कि जब किसी भी कीट को कोई चोट लग जाये तो वो खून न जमने कि वजह से उसका मरना निश्चित  है |
मांसाहारी कीटों के शाकाहारी कीटों को ख़त्म करने के अलग-अलग तरीके होते है | जैसे  कुछ मांसाहारी अपने अंडे शाकाहारी कीटों के लार्वा में दे देते है और जब उस अंडे में से बचा निकलता है तो वो उस लार्वा को ख़त्म कर देता है |  उन्होंने बताया कि जब सभी जगह किसान मिली बग से घबराये हुए थे तो निडाना में किसानो ने इसे नियंत्रित करने के लिए कोई कीटनाशक प्रयोग  नहीं किया यह काम तो अंगीरा, फंगीरा और जंगीरा ने ही कर दिया | उन्होंने हमें अलग- अलग कीटों के स्वभाव के बारे में जानकारी दी | और साथ में यह भी बताया कि कौन सा माँसाहारी कीट कौन से शाकाहारी कीट को खाता है | हमारी यह कलास रात के 8 बजे तक चली पर फिर भी थकावट का नामो-निशाँ नहीं था | रात के खाने के बाद डॉक्टर साहिब ने अगले दिन के कार्यक्रम के बारे में बताया जिसमे पहले हमे बरां कलां में किसानो की पाठशाला में 8 बजे तक पहुंचना था और उसके बाद निडाना गाँव में महलों की पाठशाला में जाना था और रात को वही निडाना में रुकना था | 

जुलाई 11 , 2011 दिन सोमवार

बरां कलां गाँव में

 11 जुलाई को हम सभी 7 बजे तक तैयार हो गए कीटों के बारे में हमारी पहली  पाठशाला में शामिल होने के लिए | हम सुबह 7 : 30 बजे जींद से बरां कलां गाँव के लिए चल दिए और कलास के समय यानि 8 बजे तक वहाँ पहुँच गए | सबसे कलास में डॉक्टर दलाल जी ने सभी से हमारा परिचय करवाया और फिर कलास शुरू हुई | इसके बाद एक ग्रुप लीडर के  नेतृत्व में 5 -5 किसानो का  
अरे अरे !! मुझे पहचानो !! 
ग्रुप बना | इसके बाद सभी ग्रुप कपास के खेत के निरीक्षण के लिए खेत में पहुंचे | सभी ग्रुपों को 10 पौधों को जांचने के लिए कहा गया | प्रत्येक ग्रुप को प्रत्येक पौधे के तीन पत्तो पर  चुरडा, तेला और सफ़ेद मक्खी खोजने थे और उनकी गिनती करनी थी |   हरेक ग्रुप  के पास छोटे-छोटे कीट देखने के लिए मैग्नीफाईंग-ग्लास थे| लिखने के लिए कापी और पैन था| लगभग डेढ़  घंटे के बाद सभी ग्रुपों ने अपनी-अपनी रिपोर्ट तैयार  की  और अपनी अपनी बारी आने पर प्रस्तुत की | सभी ग्रुपों ने जो- जो देखा उसकी ड्राइंग भी बने | रिपोर्टों से यह निष्कर्ष निकला कि आज के दिन इस कपास के खेत में सफ़ेद-मक्खी, हरा तेला एवं  चुरड़े देखे गये हैं परन्तु इनकी संख्या काफी कम है| अभी ये रस चूसकर हानि पहुँचाने वाले कीड़े कपास की फसल को हानि पहुँचाने की स्थिति में नही हैं। किसी खेत में प्रति पत्ता सफ़ेद मक्खी 6 , हरे तेले 2 और  चुरड़े 10 से कम हो तो डरने की कोई बात नहीं क्योंकि यह नुक्सान करने वाली स्तिथि से काफी कम है |  इनके अलावा इस खेत में क्राईसोपा के अंडे, मकड़ियाँ और लेडी  बीटल  भी मिली जो कि खेत के लिए एक प्राकृतिक कीटनाशी का काम करेंगी | 
यह हमारे लिए काफी अच्छा  अनुभव था | हमने पहली बार महसूस किया कि कीटों की दुनिया भी कितनी दिलचस्प   है | खेत में जाकर कीट पहचानने और उन्हें समझने का यह हमारा पहला अवसर था | 
यहाँ की पाठशाला के बाद हम निडाना गाँव के लिए चल पड़े | रास्ते में औरते बैल-गाड़ियों पर पशुओं के लिए चारा ले जाती मिली | हमारे पंजाब में तो यह नज़ारा देखने को नहीं मिलता के औरत बैल-गाडी चला रही है और मर्द बाजू में बैठा हो | 
निडाना गाँव में 
थोड़ी सी शरारत

हम 12 बजे निडाना गाँव पहुंचे | वहाँ पहुँच कर सबसे पहले हमने दोपहर का भोजन महिला खेत पाठशाला की कीट कमांडों अनीता के यहाँ किया. अनीता और उनके पति रणबीर सिंह की कीट जानकारी का इस गावँ में कोई मुकाबला नही. रणबीर सिंह तो निडानी व इग्राह गावों की खेत पाठशालाओं के साथ-साथ निडाना गावँ में डेफ्फोडिल स्कूल के छात्रों व धान के खेत में किसानों को ट्रेनिंग देने के लिए सप्ताह में चार दिन लगाता है अपना घर का काम छोडकर. भोजन के बाद हम निकल पड़े महिलाओं की कीट पाठशाला में सीखने के लिए |  वहाँ पहुँचने पर महिला कीट पाठशाला की स्दस्यों ने हम सभी का फूलों की माला पहना कर स्वागत किया गया और हमें हथजोड़े कि एक तस्वीर भी भेंट की  गई | फिर मीना मलिक और उसकी साथिनो  ने हथजोड़े , जो कि एक माँसाहारी कीट है , पर लिखा एक गीत सुनाया | गुरप्रीत सिंह ने हमारी टीम का सभी से परिचय करवाया  और फिर शुरू हुई हमारी पाठशाला | मीना और अन्य महिलाएं हमे कीटों के बारे में    
मीना कीटों के बारे में बताते हुए
जानकारी दे रही थी | उन्होंने हमें अलग- अलग कीटों के जीवन चक्कर के बारे में बताया | उनका कीतो का यह ज्ञान किसी को भी हैरान कर सकता है | भूतपूर्व सरपंच रतन सिंह जी से हमारी टीम ने खेती के बारे में बात की | उसके बाद पाठशाला के सत्र की समाप्ति की घोषणा हुई और सभी ने एक दूसरे से विदा ली | वापसी पर महिला खेती पाठशाला की स्दस्यों ने " मै बीटल हू, मै कीटल हू , तुम समझो मेरी मेहता को " गीत भी गाया और इस समय गाँव की औरतो का उत्साह देखने लायक था | 
 मीना के घर पर  
हमारे साथ गये पुरष साथियों को किसी और घर में ठहराया गया और मै और अमरजीत कौर जी को मीना के घर पर | हमने उसकी माता जी से और अन्य महिलाओं  से बातचीत की | हमने उनसे उनके दैनिक जीवन के कार्यों के बारे में जानकारी ली| उनका दिन काफी व्यस्त जाता है | घर के काम के साथ-साथ उन्हें खेतो में भी काम करना होता है | यह पूछने पर, कि क्या उन्हें इतने काम से शिकायत नहीं होती, उन्होंने कहा कि बिलकुल नहीं बल्कि उन्हें तो अच्छा  लगता है | क्या वो यह चाहेंगी कि उनकी बेटियां और बच्चे भी खेत का काम करे तो उन्होंने कहा कि बिलकुल वो चाहेंगी कि उनके बच्चे खेती का काम करे |  
मीना की ताई के घर पर

पाठशाला के उनके अनुभवों के बारे में पूछने पर उन्हों बताया कि जब पहली बार हम  डॉक्टर  साहिब के  कैंप में शामिल हुए तो हमे उनकी बाते अच्छी लगी और हमने हर मंगलवार को उनकी पाठशाला में जाने का फैसला किया | पहले तो हमें कीतो की इतनी जानकारी नहीं थी परन्तु अब वो कीतो के बारे में काफी कच जानती है | पहले खेत में जाने के कारन वो कीटों को पहचानती तो थी परन्तु  उनके नाम  नहीं जानती थी | उनकी पाठशाला को देखने के लिए बहुत से लोग आये है और उनसे बातचीत भी की है | जब हमेटी के कृषि वैज्ञानिक आये तो उनमे से एक ने पुछा कि मान लीजिये अगर खेत मेर माँसाहारी कीट ना आये तो क्या होगा तो महिलायों ने उन्हें जवाब दिया कि ऐसा हो ही नहीं सकता जहाँ शाकाहारी कीट होंगे, वहां मासाहारी कीट भी जरुर होंगे | सच में इन महिलाओं का आतम- विश्वास देखते ही बनता है | उन्होंने हमसे खेती में प्रयोग होने वाले कीटनाशको के सेहत पर पड़ने वालो प्रभावों की भी चर्चा की | 
एक तरफ जहाँ हम महिलाओं से बातचीत कर रहे थे तो दूसरी और हमारे पुरष साथी डॉक्टर साहिब के साथ खेतो में कीतो को पहचानने के लिए निकल पड़े थे , जिसके बारे में हमने उनसे बाद में हमने शिकायत भी की कि हमें साथ क्यों नहीं ले जाया  गया | हमारी अमरजीत बहन जी को तो वहां की भैंसे बहुत पसंद आई और उनका तो मन था कि एक भैंस तो वो अपने साथ ले ही जाये पर यह संभव ना हो सका | मीना कि माता जी ने हमें बताया कि यहाँ लोग  पहले अपने घर कि जरुरत के लिए दूध रखते है और अगर फिर भी बढ़ जाये तो बेचते है |  जब हमें तीनो समय दूध   
और खूब सारा मक्खन
और खूब सारा माखन मिला तो हमे समझ में आ गया कि हरयाणा को 'दूध दही का देश ' क्यों कहा जाता है | क्यों कि इस समय तो पंजाब में लस्सी, माखन तो छोडिये दूध भी पूरा नहीं पड़ता | 
शाम को डॉक्टर साहिब ने हमे अगले दिन के कार्यक्रम के बारे में बताया कि सुबह 8 बजे निडानी गाँव में पाठशाला में शामिल होने के बाद इग्राह गाँव में जायेंगे | 




जुलाई 12 दिन मंगलवार 
निडानी गाँव की पाठशाला में  मंगलवार की सुबह निडानी खेत पाठशाला में जाते हुए अचानक बलविन्द्र सिंह ने हम सबका ध्यान रास्ते में खड़े कांग्रेस घास की तरफ खीचा.सब जुट गये कांग्रेस घास के पौधों का अवलोकन एवं निरिक्षण करने. देखते-देखते ही गौरा सिंह ने कांग्रेस घास के पत्ते खा रही एक बीटल को ढूंढ़ निकला. इसके साथ ही अमरजीत ने इस बीटल के गर्ब को पत्ते खाते हुए पकड़ लिया. डा. दलाल ने बताया की यह तो मेक्सिकन  बीटल के प्रौढ़ व गर्ब हैं. इतनी ही देर में गुरप्रीत ने एक बिन्दुवा बुगड़े  को पकड़ लिया. डा. साहब ने बताया की यह तो एक मांसाहारी बुगडा है जो कांग्रेस घास पर पाए जानी वाली मेक्सिकन  बीटल के प्रौढ़ व गर्ब को अपना शिकार बनाएगा. हम निडानी गाँव की पाठशाला में पहुंचे वहाँ पाठशाला का दूसरा हफ्ता था और यह पाठशाला भी कपास के एक खेत में लगी | इस पाठशाला में आस- पास के गाँव के किसानो ने भी भाग लिया |  पहले हमारी टीम के बारे डॉक्टर साहिब ने किसानो को बताया और फिर गुरप्रीत ने हमारा और हमारी संस्था का परिचय देने के बाद अपने अनुभवो के बारे में बताया और किसानो से पाठशाला में लगातार शामिल रहने की अपील  भी की |  
अमनजोत अपने विचार सांझे करते हुए
उसके बाद अमनजोत ने भी अपने अनुभवों को साँझा करते हुए कहा कि निडाना गाँव कि औरतो के जीवन में यह कीटों का ज्ञान इतना रच- मिच गया है कि उनकी आम बातचीत में और विशेषण के रूप में और तुलना के लिए भी कीटों का जिक्र रहता है | इस बातचीत के बाद हम सभी फिरसे 5 ग्रुपों में बंटकर अपने-अपने ग्रुप लीडर के साथ खेत में चुरड़े,  
कीटों को पहचानते हुए  
सफ़ेद मक्खी और हरे तेले को ढूँढने और गिनने के लिए खेत में पहुँच गए |  डेढ़ - दो घंटे के बाद सभी अपनी- अपनी रिपोर्ट लेकर पहुंचे | सभी ने जो जो खेत में देखा उसकी ड्राइंग भी बने गई | इस खेत में भी तेले, चुरड़े और सफेद मक्खी की गिनती नुक्सान करने के स्तर से कम थी और साथ में क्राईसोपा के अंडे, उसका गरब , मकड़ियाँ, दखोड़ी भी देखी | मनबीर  जी ने बताया कि जब हमारे पास प्राकृतिक कीटनाशी है तो हमें बाज़ार से पैसे देकर खरीदने की क्या जरुरत है | एस डी ओ साहिब ने किसानो को जमीन को नाइट्रोज़न देने के लिए डेंचा और दाले बोने के लिए कहा | इस अवसर पर सभी को चाय के साथ हलवा भी खिलाया गया | 
 पाठशाला की समाप्ति के बाद हमारी टीम डॉक्टर साहिब के साथ दैनिक भास्कर के दफ्तर गई जहाँ हमने अब तक सीखे अपने काम और अनुभवों के बारे में उन्हें बताया | इसके बाद डॉक्टर साहिब हमें हमेटी के दफ्तर लेकर गए जहाँ हमें उपहारस्वरूप मैगनीफायिंग लेन्ज दिए गये |

इग्राह में गुरप्रीत किसानो से चर्चा करते हुए
इग्राह  में 
हम दोपहर के 2 : 30 बजे इग्राह पहुंचे जहाँ हम मनबीर जी के घर रुके | शाम को हमारी किसानो के साथ एक मीटिंग करवाई गयी जिसमे गुरप्रीत सिंह ने पंजाब के कीटनाशको के कारण बद से बदतर होते हालात के बारे में बताया | उसने कहा कि कैसे पंजाबियों कि सेहत इन कीटनाशको के इस्तेमाल के कारन लगातार खराब हो रही है , बच्चे  अपंग पैदा हो रहे है , समय से पूर्व पैदा हो रहे है और कैंसर जैसी नामुराद बीमारी पंजाब को  जकड़े हुए है | अगर हरियाणा में भी ऐसे ही कीटनाशक इस्तेमाल होते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब पंजाब  जैसे हालात यहाँ भी पैदा हो जायेंगे | अंत में उसने किसानो से डॉक्टर दलाल और मनबीर जी से सहयोग करने और पाठशाला में आने कि बिनती की | 
डा.सुरेन्द्र दलाल ने उपस्थित किसानो  को इस खेत पाठशाला के  उद्देश्य विस्तार से बताये| उन्होंने हरियाणा की धरती पर लड़ी गई सबसे घातक जंग महाभारत  की तुलना पिछले तीन दशकों से किसानों व् कीटों के मध्य जारी इस कीट-युद्ध से  करते हुए  बताया कि महाभारत की लड़ाई इतनी भयावह थी कि आज भी हिन्दू इस जंग की किताब को अपने घर में रखते हुए डरते हैं| लेकिन फिर भी यह लड़ाई सिर्फ अठारह दिन में अपने मुकाम पर पहुँच गई थी| पर किसान व् कीटों की यह जंग पिछले तीस  सालों से रुकने का नाम नही ले रही| इन दोनों जंगों के मुख्य भेदों पर चर्चा करते हुए डा.दलाल ने बताया कि महाभारत की लड़ाई में दोनों पक्षों को एक दुसरे की सही व् ठोस जानकारी थी| एक दूसरे की शक्तियों व् गतिविधियों का पूरा भेद था| पांडवों को कौरवों की सही पहचान, पूरे  भेद व इनकी सारी कमजोरियों का ज्ञान  था| इसी तरह कौरवों को भी पांडवों के बारे में तमाम किस्म की जानकारियां थी| जबकि इस कीटों व किसानों की वर्तमान जंग में किसानों  को कीटों की सही पहचान व भेद मालूम नही है| दूसरा मुख्य फर्क हथियारों को लेकर है| महाभारत में हर योद्धा के पास दो तरह के हथियार थेः सुरक्षात्मक हथियार व् जानलेवा हथियार| लेकिन आज हमारे किसानों के पास तो सिर्फ कीटों को मारने के मारक हथियार भर ही हैं अर् वो भी बेगाने| इसीलिए तो यह जंग ख़त्म होने का नाम नही ले रही| अत: हमारी इस पाठशाला में मिलजुल कर सारा जोर कीटों एवं इनकी विभिन्न अवस्थाओं की सही पहचान करने, इनके भेद जानने तथा इस जंग में अपने खुद के हथियार विकसित करने पर रहेगा ताकि  वर्षो से चली आ रही यह जंग समाप्त हो सके | डॉक्टर साहिब और मनबीर ने सभी किसानो को पाठशाला में शामिल होने का निमंत्रन दिया जिसे किसानो ने स्वीकार भी किया | अंत में मनबीर जी ने सभी का धन्यबाद किया |
डॉ.साहिब अंगीरा का कमाल दिखाते हुए

सुबह 8 बजे हम पाठशाला पहुंचे जिसमे फिर वही कार्यक्रम दोहराया गया | रस्मी शुरुआत के बाद सभी ग्रुप अपने-अपने ग्रुप लीडर के साथ कपास के खेत में पहुंचे और लगे  चुरडा, सफ़ेद मक्खी और हरा तेला ढूँढने और फिर गिनने | इसी खेत में डॉक्टर साहिब ने हमे अंगीरा का कमाल भी दिखाया | हमने अंगीरा को  मिली बग को ख़त्म करते देखा | बाद में सभी ने अपनी अपनी रिपोर्ट दी| क्योकि उस दिन हमें वापिस जैतो आना था सो पाठशाला का सत्र जल्दी ख़त्म कर दिया गया | मनबीर जी ने सभी का धन्यबाद किया | इग्राह से हम सभी वापिस जींद गए जहाँ डॉक्टर  साहिब के साथ एक बार फिर हमने जो अब तक सीखा उस पर चर्चा की और  उन्होंने हमें अलग- अलग कीटों की तस्वीरें भी दिखाई ताकि हम उन्हें पहचान सके |  हमने उन्हें बताया कि हमने तो कभी सोचा ही नहीं था कि कीटों को समझना, उन्हें जानना इतना दिलचस्प हो सकता है | ये कीट तो हमसे भी ज्यादा समझदार है| जैसे क्राईसोपा अपने अंडे एक धागे के ऊपर देता है ताकि उसके अन्डो को कोई नुक्सान ना पहुंचा सके | कीटों कि दुनिया सच में बहुत ही हैरान करने वाली और दिलचस्प  है और हम यह चाहेंगे कि हम इसको पंजाब में भी आगे बढ़ाए |  

3 बजे हम उनके घर से निकले और डॉक्टर साहिब और उनके दोस्त 
हाय रब्बा!! इतनी पढाई
 
हमें स्टेशन तक छोड़ने के लिए गए | उनसे विदा लेकर और फिर आने का वादा करते हुए हम  अपनी मंजिल कि तरफ बढ़े | वापसी के समय ट्रेन में भी इस सब के बारे में ही बातचीत होती रही और अमरजीत बहन जी तो  अपने नोट्स लेने में व्यस्त रहे | फिर गुरप्रीत ने कुदरत के गीत सुनाये जिसे सुनकर आस पास सीटों पर सो रहे यात्री भी उठ कर आ   
 
कुदरत के गीत गाते हुए
गए और हमारा साथ  गीतों को गुनगुनाया | ऐसे   ही गीत गाते हुए हम अपनी मंजिल पर रात के  9 बजे हम जैतो पहुंचे और एक दूसरे से विदा ली | हम लोग बहुत खुश थे क्योकि अब हम कई कीटों को पहचान सकते थे जैसे चुरडा, सफ़ेद मक्खी, हरा तेला, क्रईसोपा, सलेटी भूंड, मिली बग आदि    कुल मिला कर यह बहुत ही रोमांच से भरी हुई, शिक्षाप्रद यात्रा रही और हम अपने इस ज्ञान को और आगे बढ़ाएंगे और औरो को भी बाटेंगे |


कुछ और यादें

सफ़ेद मक्खी






 






हमारे सफ़र के साथी 


 







अमनजोत कौर

स्त्री इकाई,
खेती विरासत मिशन, जैतो